हिटलर एक जर्मन तानाशाह था और हिरण्यकश्यप हिंदू पुराणों में वर्णित दैत्यों का एक राजा था. इन दोनों के जीवनों का एक बड़ा रोचक पहलू है: इनकी मौतें. हिटलर ने अपने आपको गोली मार ली थी और हिरण्यकश्यप को हिंदुओं के एक अवतार ने मारा था.
हिरण्यकश्यप से शुरू करें, तो उसने तपस्या करके भगवान से अमरता का वरदान माँगा. लेकिन भगवान ने कहा कि चूँकि जो भी पैदा होता है, वह मरता ही है इसीलिए वह कोई और वरदान माँग ले. तब हिरणकश्यप ने कई वरदान माँगे, जैसे कि वह न दिन में मरे, न रात में; न पृथ्वी में मरे, न आकाश में; उसे न कोई मनुष्य मारे, न देवता, न जानवर; न वह हाथों से मरे, न अस्त्र-शस्त्र से; न घर के अंदर, न बाहर; इत्यादि.
फिर उसे मारने के लिए नृसिंह का अवतार हुआ जो अंश शेर, अंश मनुष्य थे. हिरण्यकश्यप को संध्याकाल में मारा गया, यानि न दिन थी, न रात; चौखट पर मारा गया, यानि न घर के बाहर, न अंदर; उसे नृसिंह ने अपनी गोद में रख कर मारा, यानि न आकाश में, न पृथ्वी पर; अपने नाख़ूनों से उसे चीर दिया, यानि न हाथ से मारा, न अस्त्र-शस्त्र से.
हिरण्यकश्यप मरने के पहले सोचता था कि वह अमर हो चुका था एक अर्थ में क्योंकि अब उसे किसी भी प्रकार मारा नहीं जा सकता था. लेकिन मृत्यु अपना रास्ता तलाश ही लेती है.
ऐसे ही कुछ हिटलर के साथ हुआ. अपने समय विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति, वह अवश्य मानकर बैठा होगा कि उसे अब कोई छू भी नहीं सकता. सुरक्षा की एक अभेद्य दीवाल चारों ओर खड़ी कर ली होगी. और शायद भगवान से वरदान भी माँगा हो कि इस दीवाल को कोई गिरा न सके. ग़रीब क्या जानता था कि स्वयं को ही मार डालेगा.
हिटलर और हिरण्यकश्यप जैसे बहुतेरे राजा, राजनेता आज भी मान के बैठे हैं कि उनका कोई सानी नहीं, उनकी शक्ति अनंत है, उन्हें कोई हरा नहीं सकता, वे अनंतकाल तक इस पृथ्वी पर राज करने वाले हैं. कितने नादान हैं जानते ही नहीं कि उनके अपने ही उनकी पीठ पर ख़ंजर उतार सकते हैं सत्तासुख के लिए.